Sayantan DattaApr 3, 20231 min readहाथ आपका जैसे मेरे कंधों परहाथ आपका जैसे मेरे कंधों पर – रात हमारे नाम नज़्म लिख गई । सुबह गाने लगी दर-ब-दर कि आज बात हो गई । दोपहर में तपते हुए पेड़ झूम उठे जैसे शाम हो गई । शाम की तनहाई को रात में पनाह मिल गई । रात जैसे आज ख़ुद ही सो गई । हाथ आपका जैसे मेरे कंधों पर ।
हाथ आपका जैसे मेरे कंधों पर – रात हमारे नाम नज़्म लिख गई । सुबह गाने लगी दर-ब-दर कि आज बात हो गई । दोपहर में तपते हुए पेड़ झूम उठे जैसे शाम हो गई । शाम की तनहाई को रात में पनाह मिल गई । रात जैसे आज ख़ुद ही सो गई । हाथ आपका जैसे मेरे कंधों पर ।
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